भारत की दस (10) पवित्र नदियाँ - ब्रह्मपुत्र, करनाली, सतलुज, सिंधु, अरुण और नोरबू लक्चू सभी तिब्बत से निकलकर भारत में बहती हैं- और वे सभी खतरे में हैं।
तिब्बत कब्जे के बाद, चीन द्वारा जारी तीव्र बुनियादी ढांचे का विकास, खनन और शहरीकरण ने पूरे तिब्बत में पर्यावरणीय संकट को बढ़ा दिया है। नदियों को प्रदूषित कर दिया है। भारत के जल संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है।
चीन सभी प्रमुख तिब्बत की नदियों पर अभूतपूर्व गति से बड़े बांधों और जल परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है। इससे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के निचले देशों में लाखों लोगों की जल-आपूर्ति बाधित हो रही है।यदि इन बांध-परियोजनाओं का संचालन जारी रहा या ऐसे ही वर्तमान दर पर चलता रहा तो लगभग 1.4 बिलियन लोगों की जल सुरक्षा पर खतरा आ जाएगा।
भारत इन पवित्र नदियों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकता है। तिब्बती जल संसाधनों के अनुपयुक्त विकास पर ध्यान देकर, भारत सभी ग्यारह निचले देशों के लिए इन नदियों का जिम्मेदार और नैतिक उपयोग सुनिश्चित करा सकता है।
तिब्बत में चीन की पर्यावरण नीतियों और भारत पर प्रतिकूल प्रभावों के बारे में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से चीन की 2023 सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा में चिंताओं को व्यक्त करें।